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थाली में छेद! (वाट्सेप वायरल, दैनिक भाष्कर, २७/११/२०१७ से उद्धृत)

सितम्बर 20, 2020

नशेड़ियों के जमघट वाले वाॅलीवुड के बड़के सरदार के पूज्य पिता, और इस गंदे नाले को गंगाजल की तरह पवित्र बताने वाली उनकी पत्नी के आदरणीय ससुर श्री हरिवंश राय बच्चन, जिनकी मधुशाला को गा-गाकर उनके नचनिया सुपुत्र पचासों साल से बड़के गवैया बने घूम रहे हैं, उनके बारे में भी थोड़ा जान समझ लेते हैं। यहां उसकी भी चर्चा होगी जो उनकी स्वयं की लिखी आटोबायोग्राफी में छूट गया है।

इसको पढ़कर आप स्वयं समझ जायेंगे कि थाली में छेद करने और और करवाने की परंपरा इनमें पीढ़ी दर पीढ़ी, कब से चली आ रही है—

इनकी आटोबायोग्राफी, ‘क्या भूलूं क्या याद रखूं’, ‘नीड़ का निर्माण फिर’, ‘बसेरे से दूर’ और ‘दशद्वार से सोपान तक’ इन चार हिस्सों में लिखी गयी है। जो कमी रह गयी है, यहां पूरी की जा रही है।

ये जनाब जब हाईस्कूल में पढ़ते थे, तब उनके एक दोस्त हुआ करते थे, नाम था–कर्कल। कर्कल की शादी हुई थी चंपा से, और अपने उस दोस्त के घर आते जाते, जया जी के ‘दत्तक ससुर’ अपने दोस्त की बीबी से ही निगाहें चार कर बैठे… बोले तो, जिस थाली में खाये, उसी में छेद कर बैठे!

इस अफेयर की वजह से ये हाईस्कूल में फेल भी हो गये। इंसान जैसा होता है, उसके मित्र भी उसी केटेगरी के होते हैं। इनके मित्र कर्कल को इनके और उनकी पत्नी के रिश्तों की जानकारी थी। अत: थाली में छेद करने का सिलसिला बेरोकटोक जारी रहा। इनके माता पिता ने,चंपा से बड़के के रिश्ते को जानते हुए भी इन्हें कभी नहीं रोका। कालांतर में इनके दोस्त कर्कल की मौत के बाद हरिवंशराय के चंपा से रिस्ते, खुलेआम, बेधड़क चलने लगे। इसी दौरान इनकी प्रेयसी चंपस रानी प्रगनेंट हो गयी। तब चंपा रानी की मां उसे लेकर हमेशा-हमेशा के लिये हरिद्वार चली गयी। इन पर दुखों का ऐसा पहाड़ टूटा कि ये बीमार पड़ गये। ऊपर से तुर्रा ये कि हरिवंश ने अपनी आटोबायोग्राफी में इस रिस्ते को राधा-कृष्ण का रिस्ता लखा है।

खैर, इसी वजह से मी’१९२६ में, जब वो BA 1st year पढ़ रहे थे, तभी उनकी शादी इलाहाबाद की श्यामा देवी से कर दी गयी। शादी के वक्त, इनकी उम्र १९ और श्यामा देवी की १४ साल थी। १९२९ में, तीन साल बाद गौना हुआ। गौना के बाद श्यामा देवी जब ससुराल आयीं, तो वे बीमार थी। इलाज के दौरान पता चला कि उन्हें टीबी है। शादी के करीब १० साल बाद १९३६ में श्यामा देवी की मौत हो गयी। इस तरह इनके जीवन के दूसरे अध्याय का भी दुखद अंत हो गया।

अब बढ़ते हैं, तीसरे अध्याय की तरफ—

हरिवंश की चारित्रिक विशेषता इतनी चकाचक थी कि एक जमाने में चंद्रशेखर आजाद और भगतसिंह के साथ रहे यशपाल की पत्नी प्रकाशवती कौर उर्फ ‘प्रकाशो’ से भी इनके नाजाइज संबंध बन गये…इसके बारे में, इन्होंने स्वयं भी लिखा है कि कैसे प्रकाशवती इनके घर में रानी नाम से रहती थी और सच्चाई किसी को पता नहीं थी, मतलब चुपके-चुपके यहाँ भी थाली में छेद किया जा रहा था।

चलिये, अब अगले अध्याय की तरफ बढ़ते हैं— हां, थाली जरूर गिनते रहना हैं।

आगे चल के ‘बाबू जी’ को इलाहाबाद यूनीवर्सिटी में अस्थायी अध्यापक के तौर पर पढ़ाने का मौका मिला, और वो वहीं विश्वविद्यालय के पास किराए के मकान में रहने लगे। इसी साल सुमित्रानंदन पंत जी से भी उनकी दोस्ती हुई। पंत जी ने इनका ‘भड़के-भांड’ का नामकरण भी किया। और यही पर आइरिस नाम की ईसाई महिला से इनकी मुलाकात हुई। चूंकि बाबू जी हर समय एक नयी थाली के जुगाड़ में रहते थे, तो यहां भी यह दोस्ती, प्रेम में बदल गयी! लेकिन इन दौनों के बीच धर्म आड़े आ गया। माता-पिता को अन्य धर्म में विवाह मंजूर नहीं था। और उस समय उनके पिता प्रताप नारायण श्रीवास्तव बीमार भी चल रहे थे, इसलिये ये ज्यादा दबाव भी नहीं बना पाए और अंतत: ये प्रेम कहानी भी अधूरी रह गयी। पर जाहिर है, यहां भी बाबू जी, थाली में छेद कर चुके थे।

अब तक इनकी पत्नी की मृत्यु हुए लगभग ५वर्ष बीत चुके थे। इसी बीच बाबूजी की निगाह एक नयी चमचमाती थाली पर पड़ी, जिसका नाम था, तेजी सूरी। ये मुलाकात, इनके दोस्त प्रकाश के घर, १९४१ में, बरेली में हुई, जहां नये साल का जश्न मनाने की तैयारी चल रही थी, तारीख थी, ३१ दिसम्बर की रात। इस समय तक बाबू जी, बड़के वाले कवि बन चुके थे। लोगों ने उनसे अपनी काव्य-रचना सुनाने का आग्रह किया।

इस पर भी उन्होंने अपनी आटो बायोग्राफी में काफी कुछ लिखा है–

‘गीत सुनाते-सुनाते मेरा गला भर आया और वो कविता सुनते-सुनते रोने लगी।’ यहीं से दौनों की प्रेम कहानी शुरू हुई और कुछ दिन बाद दौनों ने शादी कर ली। पर इसमें भी अड़चन थी, तेजी सूरी पंजाबी थीं, यह रिश्ता उनके परिवार को मंजूर नहीं था। लेकिन हरिवंश ने परिवार से विद्रोह कर, अपने लिये एक परमानेंट थाली का इंतजाम कर लिया। यही वजह थी कि तेजी कभी अपनी ससुराल नहीं गयी, क्योंकि वहाँ उनको किसी ने स्वीकार नहीं किया था।

अब आगे की दास्तान आप समझ ही रहे हैं, यहाँ से इनके जीवन में घुसते हैं, अपने रंगीले लेहरू चाचा जान और बाद में मिलकर दौनों थाली-थाली खेलते हैं। फिर जन्म होता है, हमारे शहंशाह और महानायक अमिताभ बच्चन जी का! फिर अमिताभ, रेखा, जया, अभिषेक, ऐशव्रर्या, श्वेता, नव्या इन सबकी कहानी, सब जानते ही हैं।

कुल मिलाकर, जया बच्चन के खानदान में थालियों में छेद करने की परम्परा बड़ी पुरानी रही है। सावन के अंधे को चारों ओर हरा-हरा ही दिखता है। जया जी नेइस खानदान में इतनी थाली, और इतने छेद देखे हैं कि उन्हें अपने चारों ओर वही दिखता है।

हालाकि, बाबूजी और उनकी धर्मपत्नी, तेजीजी हमारे बीच नहीं है, इसलिए उनके बारे में लिखना, अच्छा नहीं लग रहा है, पर अब जब बात निकली है तो थोड़ी दूर तक तो जायेगी ही।

।।ॐ नम: शिवाय।।

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