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खूनी राजनीति का वही खेल—

फ़रवरी 8, 2021

४३ साल पुराना, खूनी राजनीति का वही पुराना खेल आज फिर दोहराया जा रहा है…

१९७७ में, कांग्रेस को बेदखलकर, अवाम ने, सत्ता जनता-पार्टी को सौंप चुकी थी

पंजाब में भी, जनता-पार्टी और अकाली-दल गठबंधन ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया था।

ज्ञानीजैल सिंह के भयंकर भ्रष्टाचार की जांच के लिये, गुरदयाल सिंह आयोग बनाया गया था। ज्ञानीजैल सिंह का जेल जाना तय माना जा रहा था।

तब कांग्रेस ने एक योजना तैयार की थी। संजय गांधी और ज्ञानीजैल सिंह ने सिक्ख समुदाय के दो धार्मिक नेताओं को दिल्ली बुलाकर बात की थी।

उन दौनों में सबसे ज्यादा उग्र, आक्रामक और उजड्ड जनरैलसिंह भिंडरावाले को अपने प्लान की कमान सौंप दी थी।

संजय गांधी और ज्ञानीजैल सिंह की जोड़ी के साथ, भिंडरावाले की उस मुलाकात ने जिस भयानक हिंसक खूनी षड्यंत्र की जो चिंगारी सुलगाई थी, उसे भिंडरावाले-कांग्रेस-गठबंधन ने अगले ३-४ वर्षों में, बड़े जतन से, देशव्यापी भयानक आतंकवाद की आग का रूप दे दिया था। उस दौर में भिंडरावाले को रुपया देने की बात, सजय गांधी ने स्वयं स्वीकारी थी।

भिंडरावाले के आतंक की दम पर, लोकसभा-१९८० के चुनाव में, कांग्रेस को पंजाब में भारी जीत मिली थी। तूफानी दौरे कर, भिंडरावाले ने उस चुनाव में, कांग्रेस के लिये वोट मांगे थे।

केंद्र में सरकार बनते ही, पंजाब में, अकाली-जनतापार्टी सरकार भंगकर कांग्रेस ने राष्ट्रपति-शासन लगा दिया था। बाद में चुनाव करा के, जीत हासिल की थी। इस जीत में भी भिंडरावाले की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। इसके एवज में उसे तत्कालीन कांग्रेस-सरकार का बेलगाम-बेशर्म-संरक्षण एवं समर्थन मिला था।

जब अकाली-दल को धार्मिक-राजनैतिक चुनौती देने के लिये, उसने दल-खालसा नाम के आतंकी गुट की स्थापना की थी, उस समय, चंडीगढ़ के पंचतारा होटेल एरोमा में हुई, उसकी प्रेस-कांफ्रेंस के खर्च का भुगतान, तत्कालीन कांग्रेसी-गृहमंत्री, ज्ञानीजैल सिंह ने बाकायदा अपने चेक से किया था।

०९/०९/१९८१ को भिंडरावाले ने, देश के प्रख्यात पत्रकार और पंजाब केसरी के संस्थापक, संपादक लाला जगत नारायण की दिन-दहाड़े निर्मम हत्या कर दी थी। तत्कालीन कांग्रेसी सरकार के हस्तक्षेप के कारण उसको थाने से ही छोड़ दिया गया था। रिहाई पर वो विजेता की तरह, सैकड़ों हथियार-बंद गुर्गों के जुलूस के साथ, धमाके की दहशत फैलाते हुए, अपने डेरे पर चला गया था।

भिंडरावाले को तत्कालीन कांग्रेसी-सरकार का संरक्षण एवं समर्थन तब सामने आया था, जब मार्च’१९८२ में, बाल ठाकरे की चुनौती के जबाब में, अपने हथियार-बंद-गुर्गों का, ५०० कारों, मोटरसाइकिलों का काफिला लेकर, भिंडरावाले मुंबई पहुंच गया था। मुंबई में, दादर इलाके के उस गुरुद्वारे में ५ दिनों तक डेरा डाले रहा था, जिस दादर इलाके में बाल ठाकरे का घर था। उस समय भी महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकार थी।

भिंडरावाले को मुंबई जाने से रोकने की, अटलबिहारी बाजपेयी की मांग को अनसुना कर दिया गया था।

इस तरह संजय गांधी, ज्ञानीजैल सिंह और भिंडरावाले के गठजोड़ ने जो भयानक खूनी राजनैतिक षड्यंत्र की जो चिंगारी सुलगाई थी, उसके कारण, पंजाब के साथ-साथ, पूरे देश में भड़की आतंकवाद की भयानक आग १९८१ से लेकर १९९५ तक लगातार देश को जलाती रही थी। इसमें २०,००० से अधिक निर्दोष नागरिकों को अपनी जान गवांनी पड़ी थी।

वही भिंडरावाले, कांग्रेस के लिये, बाद में, भष्मासुर बन गया था। उसने अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिये, अपने तार पाकिस्तान से जोड़ लिये थे।

परिणाम स्वरूप १९८४ में, सेना ने उसे,उसके ३०० हथियार-बंद गुर्गों के साथ ढ़ेर कर दिया था।

उसके बचे हुए गुर्गों ने, इंदिरा सहित कई कांग्रेसी नेताओं की हत्या की।

आज कांग्रेस वही ४३ साल पुराना, हिंसक, खूनी-खेल, फिर खेलने पर उतारू नजर आ रही है।

कृषिमंत्री नरेंद्रसिंह तोमर जी ने संसद में क्या गलत कह दिया, कि कांग्रेस खून से खेती कर रही है।

प्रख्यात अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार मार्क टुली और सतीष जैकब की जोड़ी ने अपनी किताब—“अमृतसर: मिसेज गांधीज लास्ट बैटल” में और सेक्युलर पत्रकार कुलदीप नैयर ने २५-३० साल पहले अपनी किताब—“बियाण्ड दा लाइन्स ” में उन सारे तथ्यों का वर्णन किया है, जिनका उल्लेख यहाँ इस पोस्ट में किया गया है।

SatishChandraMishra जी की WhatsApp पोष्ट से साभार।

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